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Friday, October 23, 2009

" दो पल "---- एक रचना

" दो पल "

चिंता मत कर प्यारे कल की ,

सोच बस्स ! आज के इस पल की ,

होती है हार एक दिन सबकी ,

कोई इट नही इतनी पक्की |



युग युग का है तू युगंधर ,

जिन्दगी है दुःख का समंदर ,

जीना तु ये सोचकर ,

बिताना जिन्दगी तु खेलकर |



करता है बदनाम दूसरों को जमाना ,

तु है एक मुसाफिर बेगाना ,

मत खोलना फ़िर कोई मयखाना ,

बस्स ! सोच के ये तराना |



वक्त नही तेरे पास कल ,

यही है बस्स ! दुःख के पल ,

बिताना तु उसको कहके चल ,

फ़िर " तुलसी " तेरे है "दो पल " | "


Thursday, October 8, 2009

" हँसना मना है | "

संता अपने शादी का सरटीफीकैट लेकर बैठे बैठे कुछ ढूंढ़ रहा था अचानक वो गुस्सा हो गया ......

संता : " ये ग़लत कर रही है सरकार ..."

बँटा : क्या ग़लत कर रही है ?

संता : यार कब से ढूंढ़ रहा हु , हर चीज़ में एक्सपिएरी डेट होती ,मगर इस में नही है ... "

कुछ आया समज में ...अगर आया हो तो इसे अपने दोस्तों को सुनाओ और हँसते रहो ...