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Tuesday, April 20, 2010

"ख़त ,कफ़न, कासिद ..और तेरा इंतज़ार |"


" तेरे ख़त का इंतज़ार करते करते ,

बीत गया हर लम्हा ,

न तेरा "ख़त" आया ,न कम्बक्त "कासिद" आया ,

ये " कफ़न" न जाने कहाँ से आया ,

आज भी ओढ़े सोया हु " कफ़न" ,

ख़त के इंतज़ार में "

6 comments:

लता 'हया' said...

शुक्रिया ,
कमेन्ट का इंतज़ार था ? नहीं ? कि हाँ ?.
आ ही जाते हैं कभी ना कभी यहाँ -वहाँ
ख़त बेवफा हो सकते हैं ,
अपनों के कमेंट्स नहीं
तो हिंदीमस्ती पर क़फ़न मत डालियेगा

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सोने तक तो ठीक है ..नींद खुल ही जायेगी ...अच्छी प्रस्तुति ..

Vivek Jain said...

अच्छी प्रस्तुति ..
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

रश्मि प्रभा... said...

kaash wo kasid aa jata , maut ka gam nahin hota

virendra sharma said...

तुम्हारे ख़त का इंतज़ार करते करते -
नींद आती तो खाब आता ,
खाब आता तो तुम आते ,
तुम्हारी याद में न नींद आई न खाब आया न तुम आये ।
एक और शैर आपकी नजर -
न कोई वक्त ,न कोई वायदा ,न कोई उम्मीद ,
खड़े थे रह गुज़र पर करना था तेरा इंतज़ार .

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर रचना | आभार

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