
" मै वापस "लव आज कल " में खो गया ..... फ़िल्म एक मोड़ पर आ गई थी ..... की मेरे घर के दरवाज़े पर हलकी सी आहट सुनाए दी ,मै दरवाज़े के करीब जाने लगा .....आहट तो आती ही थी ,मैंने टी.वी बंद करके रिमोट को सोफे पर फेंका ...और दरवाज़े पर अपना कान जमा दिया ...हलकी ठक॥ ठक आवाज़ आ रही थी सायद कोई दरवाज़ा थोक रहा हो ,मैंने अपना कान वापस जमाया दरवाज़े पर ..तो थोडी ही देर में धमाकेदार ठोक ठोक से मेरा कान काम करना बंद होगया ..घर में पड़ा लकडी का डंडा लेकर मैंने दरवाज़ा खोला ...जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला मेरे फटीचर पड़ोसी राजन अंदर आगया |मैंने कसकर डंडा उसकी पीठ पर मार दिया ..वो जाकर सोफे पर गिरा तो टी.वी चालू हो गया....| अरे मुझे क्यों मारा ? सॉरी राजन , मै समजा की चोर आया है ....कहते मूव लेने मैंने ड्रावर खिंचा मूव निकली और राजन की पीठ पर लगाई ...मगर राजन के चीखने से ..हुवा मामला गरम |"
" राजन की चीख सुनकर पदोश में चोरी के लिए घुसा चोर सावधानी से भागने की पुरी तयारी कर चुका था ...उसने जेवर और पैसे अपनी जेब और छोटी सी बेग में भरे और नौ दो ग्यारा होने कोहो गया था तैयार ,राजन को मैंने पुछा की इतनी रात मेरे घर का दरवाज़ा क्यों ख़त खता ता था |चोर के बारे में हमारी बात हुई और उसने मुझसे कहा की वो घर जा रहा है अगर मुझे लगे की चोर आया है तो मई उसे मिस कॉल दू ,...मैंने उसे हाँ कहा और उसे छोड़ने घर के गेट के पास गया ..मैंने गेट खोला तो किर किर आवाज़ के साथ गेट खुला ...ये आवाज़ सुनकर चोर को लगा की हम उसे पकड़ने के लिया आ रहे है , चोर ने दौड़ना सुरु किया ,मै और घायल राजन ने पिच्छा करना चालू किया ...चोर आगे ..हम पिच्छे ...और हमारे पिच्छे गली के सारे कुत्ते ...कुत्ते भूंक ते थे ..राजन चिलह ता था और मै मुट्ठी बंद करके राजन और कुत्ते से आगे रहने की कोसिस करता था ....चार रस्ते पर से हमारी बारात गुजरी की पुलिशवाले ने हमे देखा ....अब माज़रा कुछ इस प्रकार बना ....आगे चोर ..पिच्छे मै ..मेरे पिच्छे राजन ..उसके पिच्छे कुत्ते ....और कुत्ते के पिच्छे कुत्ता ..अब चोर गल्ली से होकर जा रहा था ..सोअर सुनकर सब गल्ली के लोग भी हमारे पिच्छे दौड़ ने लगे .... चोर कुछ ही मिनटों में हमारी नज़र से गायब हो गया ....आगे बहुत बड़ा मैदान था जिसके साइड में न जाने कई सारी भैसे बंधी थी , चोर के गायब होने से हम मुस्किल में पड़ गए क्यों की कुत्ते के पिच्छे जो कुत्ता दौड़ रहा था उसको कैसे समजाये की हम चोर के पिच्छे दौड़ रहे थे ..... उस पुलिशवाले ने आकर सिद्ध प्रहार किया राजन पर .....फ़िर क्या हुवा पता नही ...सिर्फ़ " ओ... माँ " ऐसी आवाज़ आई और राजन मुझसे आगे निकल गया ....अब राजन आगे ..मै पिच्छे ...और मेरे पिच्छे पुलिश और लोगो का काफिला ....भागते भागते हमने मैदान पार किया ...तो देखा की वो चोर " गोबर के ढेर " के बीचो बिच फंस गया है | उसे बहार निकला तो हमने अपनी नाक बंद करली ...दो फिट गोबर के ढेर में फंस जाने की वजह से चोर बदबू मारने लगा था .....हमने उसे खाम्ब्बे से बांध दिया पदोश से रस्सी लेके .....|"
"ख़राब बदबू से बचने के लिए मै जरा दूर जाकर खड़ा रहा ..मैंने देखा की राजन रोड पर बैठ गया है ,तो मै पास जाकर बोला की " क्यों जोगिंग हो गई न ?"..वो बोला " रे जा रे आज से तेरे साथ कभी नही आऊंगा ..चोर के पिच्छे भाग ने की क्या जरूरत थी ? " ..मैंने कहा " मै कहाँ भाग रहा था ..तू भागा तो मै भी भागा |" राजन turant बोला " यार मै कहाँ चोर के पिच्छे भाग रहा था ....मै तो कुत्ते से बचने के लिए भागा था | "
"तभी चोर पिच्छे से बोला " मै भी तुम्हारे हाथ नही लगता अगर अन्धेरें में गोबर के ढेर को मिटटी का न समजता |"
12 comments:
good
badhiya hai
likhte rahiye
बहुत खुब , शानदार। आपकी लेखन विधि बहुत ही सशक्त है। लिखतें रहें।
हा aहा हा ये भी खूब रही---कहानी की रवानगी ने बान्धे रखा बधाई
बहुत अच्छे ।
thik hai,chalega.narayan narayan
सुंदर रचना के साथ स्वागत है
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है....
http://www.alkagoel.com/index.html
वाह वाह क्या बात है! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम !
" aap sabhi ka is blog per swagat hai "
" AAP SABKA AABHARI HU KI AAPNE MERA HOSLA BADHAYA "
----- eksacchai {AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
good
हा हा हा हा ...
बहुत ही बढ़िया।
आपकी भी जिन्दगी भी मजेदार है और किस्से तो सुभानाल्लाह!
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